Atal Bihari Vajpayee
क्या खोया क्या पाया जग में मिलते और बिछड़ते मग में मुझे किसी से नहीं शिकायत तद्दापी छाला गया पग -पग में एक दृष्टि बीती पर डाले यादों की पोटली टटोले पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी जीवन एक अनंत कहानी पर तन की अपनी सीमाएं तद्दापी सौ शरदों की वाणी इतना काफी है अंतिम दस्तक पर खुद दरवाजा खोले जन्म -मरण का अविरत फेरा जीवन बंजारों का डेरा आज यहाँ कल कहाँ कुछ है कौन जानता किधर सवेरा अँधियारा आकाश असीमीत प्राणों के पंखों को तुले अपने ही मन में कुछ बोले
http://www.atalbiharivajpayee.in से
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