आग लगेली बदन में घटा बरसेगी नज़र तरसेगी मगर मिल न सके गे दो मन एक ही आ गन में अब के सजन सावन में दो दिलो के बीच ख डी दीवारे . बीच कैसे सुनू . नगी मई . न पीया प्रेम की पुकारे . न चोरी चुपके से तुम लाख करो जातां , सजन मिल न सके . नगे दो मान एक ही आ . नगन में . न अब के सजन सावन में . न इतने बा . दे घर में . न नही . न एक भी झरो . नका किस तरह हम दे . नगे भला दुनिया को धोका रात भर जगाएगी ये मस्त मस्त पवन , सजन मिल न सके . नगे दो मान एक की आ . नगन में . न ईश ... अब के सजन सावन में . न तेरे मेरे प्यार का ये साल बुरा होगा जब बहार आएगी तो हाल बुरा होगा का . न्ते लगाएगा ये फूलो . न भरा चमन , सजन मिल न सके . नगे दो मान एक ही आ . नगन में . न अब के सजन सावन में . न आग लगेली बदन में . न
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रोना मना है - ईद है
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बड़े चाव से एक मियाँ ने, घर में बकरा पाला जी । बेटी पानी देती उसको, देता मियाँ निवाला जी ॥ स्वार्थ भरा था प्यार मियाँ का, पर बेटी का निश्छल था । सिर्फ ईद का इंतजार ही, बड़े मियाँ को पल - पल था ॥ ऐसी आयी ईद कि आँगन, आज लहू से सन बैठा । रोज़ निवाला देने वाला, मियाँ भी दानव बन बैठा ॥ इक झटके में बकरे का सिर,धड़ से अलग किया देखो। भोली बेटी समझ न पायी, ये क्या किया मियाँ देखो ॥ रोज़ की भाँति आयी है, बकरे को देने पानी जी । कलम भी रोई मेरी लिखकर, ऐसी मर्म कहानी जी ॥ आज जरा सा भी देखो, पानी का बर्तन नही रीता । सोंच रही बालक बुद्धि , क्यों बकरा पानी नही पीता ॥ ईद के दिन भी सुस्त पड़ा है, क्यों मन में उल्लास नही ? कटे शीश से पूछ रही, क्या मुन्ना तुझको प्यास नही ?