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Showing posts from June, 2009
अपनी आँखों में बसाकर कोई इक़रार करूँ - २ जी में आता है कि जी भर के तुझे प्यार करूँ अपनी आँखों में बसाकर कोई इक़रार करूँ मैं ने कब तुझ से ज़माने की ख़ुशी माँगी है एक हलकी सी मेरे लब ने हँसी माँगी है - २ सामने तुझ को बिठाकर तेरा दीदार करूँ जी में आता है कि जी भर के तुझे प्यार करूँ अपनी आँखों में बसाकर कोई इक़रार करूँ साथ छूटे न कभी तेरा यह क़सम ले लूँ हर ख़ुशी देके तुझे तेरे सनम ग़म ले लूँ - २ हाय, मैं किस तरह से प्यार का इज़हार करूँ जी में आता है कि जी भर के तुझे प्यार करूँ अपनी आँखों में बसाकर कोई इक़रार करूँ
तुम्हे भुलाना इतना आसां नहीं, कहेते हो हमे भूला दिया तुमने. खुदा को क्या, तुमने देखा है कही. नहीं देखा फिर भी क्या भूल गए, मैंने देखा ही क्या, चाहा है तुम्हे, तो कहो कैसे तेरी यह बात सुने .
अपना दिल पेश करूँ, अपनी वफ़ा पेश करूँ कुछ समझ में नहीं आता तुझे क्या पेश करूँ मेरे ख़्वाबों में भी तू, मेरे ख़यालों में भी तू कौन सी चीज़ तुझे तुझसे जुदा पेश करूँ जो तेरे दिल को लुभा ले, वो अदा मुझमें नहीं क्यों न तुझको कोई तेरी ही अदा पेश करूँ तेरे मिलने की ख़ुशी में कोई नग़मा छेड़ूँ या तेरे दर्द-ए-जुदाई का ग़िला पेश करूँ
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो के न याद हो वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो के न याद हो वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े-मज़े की हिकायतें वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो के न याद हो सुनो ज़िक्र है कई साल का, कोई वादा मुझ से था आप का वो निबाहने का तो ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो के न याद हो कभी हम में तुम में भी चाह थी, कभी हम से तुम से भी राह थी कभी हम भी तुम भी थे आश्ना, तुम्हें याद हो के न याद हो हुए इत्तेफ़ाक़ से गर बहम, वो वफ़ा जताने को दम-ब-दम गिला-ए-मलामत-ए-अर्क़बा, तुम्हें याद हो के न याद हो वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे पेश्तर, वो करम के था मेरे हाल पर मुझे सब है याद ज़रा-ज़रा, तुम्हें याद हो के न याद हो कभी बैठे सब में जो रू-ब-रू तो इशारतों ही से गुफ़्तगू वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो के न याद हो किया बात मैं ने वो कोठे की, मेरे दिल से साफ़ उतर गई तो कहा के जाने मेरी बाला, तुम्हें याद हो के न याद हो वो बिगड़ना वस्ल की रात का, वो न मानना किसी बात का
अखियों के झरोखों से , मैने देखा जो सांवरे तुम दूर नज़र आए , बड़ी दूर नज़र आए बंद करके झरोखों को , ज़रा बैठी जो सोचने मन में तुम्हीं मुस्काए , बस तुम्हीं मुस्काए अखियों के झरोखों से इक मन था मेरे पास वो अब खोने लगा है पाकर तुझे हाय मुझे कुछ होने लगा है इक तेरे भरोसे पे सब बैठी हूँ भूल के यूँही उम्र गुज़र जाए , तेरे साथ गुज़र जाए जीती हूँ तुम्हें देख के , मरती हूँ तुम्हीं पे तुम हो जहाँ साजन मेरी दुनिया है वहीं पे दिन रात दुआ माँगे मेरा मन तेरे वास्ते कहीं अपनी उम्मीदों का कोई फूल न मुरझाए अखियों के झरोखों से ... मैं जब से तेरे प्यार के रंगों में रंगी हूँ जगते हुए सोई रही नींदों में जगी हूँ मेरे प्यार भरे सपने कहीं कोई न छीन ले दिल सोच के घबराए , यही सोच के घबराए अखियों के झरोखों से ... कुछ बोलके ख़्हामोशियाँ तड़पाने लगी हैं चुप रहने से मजबूरियाँ याद आने लगी हैं तू भी मेरी तरह हँस ले , आँसू पलकों पे थाम ले , जितनी है ख़्हुशी यह भी अश्कों में ना बह