ज़िन्दगी के शोर , राजनीत की अपधाती , रिश्तों नातों के
गलियों और क्या खोया क्या पाया के बाजारों से आगे , सोच
के रास्ते पर कहीं एक ऐसा नुक्कड़ आता है जहाँ पहुँच
कर इंसान एकाकी हो जाता है . तब , जाग उठता है एक
कवी . फिर शब्दों के रंगों से जीवन की अनोखी तस्वीरें
बनती हैं , कवितायें और गीत , सपनों की तरह आते हैं
और कागज़ पर हमेशा के लिए अपना घर बना लेते हैं .
अटल जी की ये कवितायें , ऐसे ही पल , ऐसे ही छाओं में
लिखी गयी हैं , जब सुनाने वाले और सुनाने वाले में ,
तुम और मैं की दीवारें टूट जाती है , दुनिया की साड़ी
धड़कने सिमट कर एक दिल में आ जाती हैं , और कवी के
शब्द दुनिया के हर सम्वेलन शील इंसान के शब्द बन
जाते हैं .
http://www.atalbiharivajpayee.in से
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