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सोचिये जरा

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सोचिये जरा

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Atal Bihari Vajpayee

क्या खोया क्या पाया जग में मिलते और बिछड़ते मग में मुझे किसी से नहीं शिकायत तद्दापी छाला गया पग -पग में एक दृष्टि बीती पर डाले यादों की पोटली टटोले पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी जीवन एक अनंत कहानी पर तन की अपनी सीमाएं तद्दापी सौ शरदों की वाणी इतना काफी है अंतिम दस्तक पर खुद दरवाजा खोले जन्म -मरण का अविरत फेरा जीवन बंजारों का डेरा आज यहाँ कल कहाँ कुछ है कौन जानता किधर सवेरा अँधियारा आकाश असीमीत प्राणों के पंखों को तुले अपने ही मन में कुछ बोले    http://www.atalbiharivajpayee.in से      

Atal Bihari Vajpayee

ज़िन्दगी के शोर , राजनीत की अपधाती , रिश्तों नातों के गलियों और क्या खोया क्या पाया के बाजारों से आगे , सोच के रास्ते पर कहीं एक ऐसा नुक्कड़ आता है जहाँ पहुँच कर इंसान एकाकी हो जाता है . तब , जाग उठता है एक कवी . फिर शब्दों के रंगों से जीवन की अनोखी तस्वीरें बनती हैं , कवितायें और गीत , सपनों की तरह आते हैं और कागज़ पर हमेशा के लिए अपना घर बना लेते हैं .     अटल जी की ये कवितायें , ऐसे ही पल , ऐसे ही छाओं में लिखी गयी हैं , जब सुनाने वाले और सुनाने वाले में , तुम और मैं की दीवारें टूट जाती है , दुनिया की साड़ी धड़कने सिमट कर एक दिल में आ जाती हैं , और कवी के शब्द दुनिया के हर सम्वेलन शील इंसान के शब्द बन जाते हैं .    http://www.atalbiharivajpayee.in  से